उत्तर प्रदेश की राजनीति में गन्ना किसानों का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है, लेकिन पिछले कुछ समय में कुछ राजनीतिक बदलावों के कारण गन्ना मूल्य का मुद्दा उतना प्रमुख नहीं बन पाया है। पश्चिमी यूपी में राष्ट्रीय लोकदल के भाजपा से गठबंधन के बाद स्थिति में बदलाव आया है। इस बार पेराई सत्र की शुरुआत के बावजूद, गन्ना मूल्य का ऐलान कोई बड़ा विवाद नहीं बना है और न ही गन्ने के भाव को लेकर कोई बड़ी हलचल देखने को मिल रही है।
उत्तर प्रदेश में गन्ने का पेराई सत्र 1 अक्टूबर से शुरू हो चुका है, लेकिन अभी तक राज्य सरकार ने गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) का ऐलान नहीं किया है। आमतौर पर, किसानों को अपनी फसल की बुवाई से पहले ही इसके दाम के बारे में पता होना चाहिए, लेकिन इस बार किसानों को अपनी फसल की कटाई के बाद भी गन्ने के दाम का इंतजार करना पड़ रहा है। इस साल गन्ने के मूल्य में बढ़ोतरी की कोई विशेष चर्चा भी नहीं हो रही है।
केंद्र सरकार ने फरवरी में गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 340 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था, जो पिछले वर्ष के मुकाबले 25 रुपये अधिक था। हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) को लेकर अभी तक कोई घोषणा नहीं की है, और इसका मुख्य कारण राज्य के बदलते राजनीतिक समीकरण हैं।
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उत्तर प्रदेश में करीब 45 लाख किसान परिवार गन्ने की खेती पर निर्भर हैं, और राज्य की अर्थव्यवस्था में गन्ने का योगदान सालाना 50 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा है। यही कारण है कि गन्ना किसानों का प्रभाव राज्य की राजनीति पर महत्वपूर्ण रहा है। लेकिन जब से राष्ट्रीय लोकदल ने भाजपा से गठबंधन किया है, गन्ना मूल्य को लेकर कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ है, और न ही गन्ने के भाव बढ़ाने की मांग ने जोर पकड़ा है। हालांकि, इस साल राज्य में कुछ महत्वपूर्ण उपचुनाव होने वाले हैं, जिनमें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों की सीटें शामिल हैं।
बिजनौर जिले के पुंडरी गांव के किसान राजेंद्र सिंह का कहना है कि इस बार न तो राष्ट्रीय लोकदल ने गन्ना मूल्य को लेकर कोई बड़ा मुद्दा उठाया है और न ही किसान संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका मानना है कि रालोद के भाजपा से गठबंधन के बाद किसानों की स्थिति कमजोर हुई है, और इस कारण सरकार पर दबाव कम हो गया है।
गन्ना मूल्य कब 400 रुपये प्रति क्विंटल को पार करेगा?
पिछले साल, चीनी, एथेनॉल और खांडसारी उत्पादन की बढ़ती मांग के कारण, कई खांडसारी इकाइयों ने गन्ने का दाम 400 रुपये प्रति क्विंटल तक दिया था। इस वजह से गन्ने के एसएपी में 400 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की उम्मीद थी, लेकिन इस बार भी गन्ने के दाम का 400 रुपये से ऊपर जाना मुश्किल लगता है। चीनी मिलें इस साल गन्ने के मूल्य में वृद्धि के पक्ष में नहीं हैं, हालांकि वे चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) और एथेनॉल के दाम बढ़ाने की मांग कर रही हैं।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का कहना है कि बढ़ती महंगाई और उत्पादन की लागत के मद्देनजर गन्ने का दाम 500 रुपये प्रति क्विंटल तय किया जाना चाहिए, और बकाया भुगतान भी ब्याज सहित किया जाना चाहिए। लेकिन इस बार भारतीय किसान यूनियन भी गन्ने के रेट को लेकर उतनी सक्रिय नहीं दिख रही है, जिसका कारण पिछले बड़े किसान आंदोलनों के बाद किसान संगठनों में आई बिखराव की स्थिति को बताया जा रहा है। इससे सरकार पर किसानों का दबाव कम हो गया है।
आठ वर्षों में केवल 55 रुपये की बढ़ोतरी
उत्तर प्रदेश में गन्ने के मूल्य में पिछले आठ वर्षों में केवल 55 रुपये की वृद्धि हुई है। 2017-18 में गन्ने का एसएपी 325 रुपये से बढ़कर 335 रुपये प्रति क्विंटल हुआ था, और फिर अगले तीन वर्षों तक वही मूल्य बना रहा। 2022 में विधानसभा चुनाव से पहले राज्य सरकार ने 2021-22 सीजन के लिए एसएपी में 25 रुपये की वृद्धि की और इसे 350 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया। हालांकि, अगले साल पेराई सत्र के दौरान कोई वृद्धि नहीं की गई।
गन्ने के मूल्य में बढ़ोतरी का इतिहास
पिछले सात सालों में यूपी में गन्ने का एसएपी केवल तीन बार बढ़ा है: 10 रुपये, 25 रुपये, और 20 रुपये प्रति क्विंटल। ये बढ़ोतरी मुख्य रूप से चुनावी साल में की गई।
यूपी से ज्यादा रेट हरियाणा-पंजाब में
पिछले साल, पंजाब में गन्ने का एसएपी सबसे ज्यादा था, जहां आम आदमी पार्टी की सरकार ने इसे 391 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया था। हरियाणा में भी गन्ने का एसएपी 386 रुपये प्रति क्विंटल था। उत्तर प्रदेश में गन्ने का एसएपी 370 रुपये प्रति क्विंटल था, जबकि उत्तराखंड में यह 375 रुपये प्रति क्विंटल था।
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